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चुनावी बॉन्ड स्कीम गैरकानूनी; सुप्रीम कोर्ट

साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी 31 मार्च तक इससे जुड़ी सभी जानकरियां अपनी वेबसाइट पर साझा करने को कहा है।

  • इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का चला चाबुक
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा इलेक्टोरल बॉन्ड ‘असंवैधानिक’
  • CJI चंदचूड़ के फैसले से हिल गई BJP

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को गैरकानूनी करार दिया है। अब कोई भी पार्टी इस माध्यम से चंदा नहीं ले पाएंगी। इसके साथ ही कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी साझा करने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी 31 मार्च तक इससे जुड़ी सभी जानकरियां अपनी वेबसाइट पर साझा करने को कहा है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया है. इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं.

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कोर्ट ने 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि चंदा देने वालों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करना नियमों के खिलाफ है. ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले की जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने तारीफ़ की है. प्रशांत भूषण ने कहा कि इस फ़ैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूती मिलेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द करने के आदेश के बाद राजनतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं।

काँग्रेस संसद राहुल गांधी राहुल गांधी ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को लेकर सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट के जरिए कहा, नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट नीतियों का एक और सबूत आपके सामने है. बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को रिश्वत और कमीशन लेने का माध्यम बना दिया था. आज इस बात पर मुहर लग गई है.”

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन को रोकने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा दूसरे विकल्प हैं. इस तरह की खरीद से काले धन को बढ़ावा ही मिलेगा. इससे कोई रोक नहीं लगेगी और इससे पारदर्शिता का भी हनन होता है. CJI  डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट सिर्फ इस आधार पर आंखें नहीं मूंद सकता कि इसके दुरुपयोग की संभावना है. कोर्ट की राय है कि काले धन पर रोक लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है. CJI ने कहा कि ये उचित नहीं है कि काले धन पर रोक लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया जाए.

इंडियन एक्सप्रेस के एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच भारतीय स्टेट बैंक ने 9 हजार 208 करोड़ 23 लाख रुपये का चुनावी बॉन्ड बेचा है. इसमें सबसे अधिक पैसे भारतीय जनता पार्टी को मिले हैं. एक्सप्रेस को ये जानकारी 2023 में SBI से RTI के माध्यम से प्राप्त हुई थी. इस रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 तक बिके बॉन्ड्स के पैसों में 57 प्रतिशत भाजपा को और 10 प्रतिशत कांग्रेस को मिले थे.

इस चुनावी बॉन्ड को बंद करवाने के पीछे  एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म  यानि ADR का बहुत बड़ा हाथ है।   इलेक्टोरल बॉन्ड के ख़िलाफ़ जो याचिकाएँ दायर की गई थीं, उनमें कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के ख़िलाफ़ है.

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित था और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी थीं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है.

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बता दें कि एडीआर ही वह संस्था है, जिसने कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर याचिका दाखिल की थी। एनजीओ ADR चुनावी सुधार को लेकर कई तरह के काम कर रहा है। इस समय वोटिंग के दौरान जो NOTA का विकल्प आपको मिला है, वह भी इसी एनजीओ की ही देन है। इसके साथ ही उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामें में अपनी संपत्ति और अपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा भी इसी संस्थान के बदौलत भरा जाता है। इसके लिए एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।

ADR ने कोर्ट के फैसले और उसमें समय को लेकर दिए निर्देशों की भी तारीफ़ की। अनिल वर्मा ने बताया कि कोर्ट ने अपने आदेश में स्टेट बैंक को बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारियां तीन हफ़्तों में साझा करने को कहा है। इसके साथ ही चुनाव आयोग को भी बॉन्ड की सभी जानकारियां 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर साझा करने को कहा है। वह कहते हैं कि उम्मीद है कि मार्च में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाए और अप्रैल से चुनाव शुरू हो जाएं। इससे पहले ही मतदाताओं को मालूम हो जायेगा कि किसने किस पार्टी को और कितना चंदा दिया है।

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