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कुंभ मेला: प्रयाग कुंभ मेले में 12 करोड़ करेंगे स्नान

प्रयाग कुंभ मेला – 2019, में 12 करोड़ तीर्थ यात्रियों के आने का अनुमान है. संगम तट पर कुंभ मेले  का आयोजन 14 जनवरी से  4 मार्च तक होगा.


NESamachar न्यूज़ डेस्क

तीर्थराज प्रयाग में अर्द्धकुंभ 15 जनवरी से चार मार्च 2019 तक कुम्भ आयोजित होगा, जिससे कुंभ में तीन शाही स्नान सहित छह मुख्य स्नान पर्व होंगे.  परन्तु  उत्तर प्रदेश के मुख्ययमंत्री ने अर्द्धकुंभ को शासकीय स्तर पर  कुंभ के रूप में मान्यता देने  साथ इसे भव्य  और अविस्मरणीय बनाने हेतु जुटी है .

ये जानकारी देते हुए श्री गणेशानंद आश्रम वृन्दावन के महामडलेश्वर स्वामी जयकिशन गिरी महाराज ने बताया कि कुम्भ का सबसे बड़ा आकर्षण मेले में अखाड़ों शाही प्रवेश, शाही स्नान व शाही स्नान हेतु निकलने वाला शाही जुलुस होता है.

इस जुलूस में सभी अखाड़ों से संबद्ध महामंडलेश्वर परंपरागत रूप से मेला क्षेत्र स्थित अपने शिविरों से सम्मिलित होते हैं। इसके बाद अपने-अपने- अखाडो के शाही जुलूल में पूर्व निर्धारित समय के अनुसार सम्मिलित होंगे। इसे देखने श्रद्धालु व तीर्थयात्री अपने में दो या कई  पूर्व  पहुंचते हैं। स्वामीजी ने बताया कि,  पूर्व सूचना देकर इसलिए पहुंचना होता है, ताकि शिविर में सीमित कैम्पों] टेन्ट में  उनके रुकने आदि की उचित व्यवस्था हो सके.

मेले के 3 शाही स्नान-  मकर संक्रांति- 15 जनवरी, मौनी अमावस्या- 4 फरवरी, वसंत पंचमी- 19 फरवरी 

इसके अलावा लाखों की भीड़ को  नियंत्रित करने सभी तीनों शाही स्नान एवं स्नान पर्व के पहले दो दिनों तक वाहन आदि पर प्रतिबंधित होता है.  इस कारण पूर्व में मेला क्षेत्र न पहुंचने श्रद्धालुओं एवं तीर्थयात्रियों को औसत 5 से 15 किलोमीटर या अधिक पैदल चलना पड़ता है.

गणेशानंद आश्रम के वरिष्ठ स्वामी सत्यानंद जी ने बताया कि, देश के सात प्राचीन नगरी में शामिल इलाहाबाद का नाम भाजपा सरकार द्वारा प्रयागराज करने की कार्यवाई हो रही है, जो शीघ्र ही हो जाएगी.

कुंभ मेला: प्रयाग कुंभ मेले में 12 करोड़ करेंगे स्नान

उन्होंने बताया कि, कुम्भ की भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें दुनिया के 192 देश के राजदूत, उच्चायुक्त,प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे.

स्वामीजी ने बताया कि, 49 दिनों के कुंभ में तीनों शाही स्नान पर्यन्त अखाड़ों के महामडलेश्वर रहेंगे.  मेले व लगभग 12 करोड श्रद्धालु, तीर्थयात्री, पर्यटक आदि देश-दुनिया से आने का अनुमान है, जो दुनिया में एक रिकार्ड होगा.

कुंभ की अवधि में 15 जनवरी को मकर संक्रांति, 21 फरवरी को पौष पूर्णिमा, चार फरवरी को मौनी अमावस्या, 10 फरवरी को वसंत पंचमी, 19 फरवरी को माघी पूर्णिमा व चार मार्च को महाशिवरात्रि मुख्य स्नान पर्व होंगे.  इसी अवधि में तीन शाही स्नान मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या व वसंत पंचमी पर होंगे। महाशिवरात्रि स्नान के साथ ही कुंभ सम्पन्न होगा.

कुंभ मेले का इतिहास

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है.  माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी.

सागर मंथन से जब अमृत कलश प्राप्त हुआ तब अमृत घट को लेकर देवताओं और असुरों में खींचा तानी शुरू हो गयी.  ऐसे में अमृत कलश से छलक कर अमृत की बूंद जहां पर गिरी वहां पर कुंभ का आयोजन किया गया.

कुंभ मेला: प्रयाग कुंभ मेले में 12 करोड़ करेंगे स्नान

अमृत की खींचा तानी के समय चन्द्रमा ने अमृत को बहने से बचाया.  गुरू ने कलश को छुपा कर रखा.  सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इन्द्र के कोप से रक्षा की.  इसलिए जब इन ग्रहों का संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ का अयोजन होता है.  क्योंकि इन चार ग्रहों के सहयोग से अमृत की रक्षा हुई थी.

मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन और नासिक के स्थानों पर ही गिरा था, इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन बरस बाद लगता आया है.

12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है.  जबकि कुछ दस्तावेज बताते हैं कि कुंभ मेला 525 बीसी में शुरू हुआ था.

कुंभ मेला किसी स्थान पर लगेगा यह राशि तय करती है.  वर्ष 2019 में कुंभ मेला प्रयाग ईलाहाबाद में लग रहा है.  इसका कारण भी राशियों की विशेष स्थिति है.

कुंभ के लिए जो नियम निर्धारित हैं उसके अनुसार प्रयाग में कुंभ तब लगता है जब माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरू मेष राशि में होता है.

कुंभ के आयोजन में नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है.  इसलिए इन्हीं ग्रहों की विशेष स्थिति में कुंभ का आयोजन होता है.

शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं का दिन होता है, इसलिए हर बारह वर्ष पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है.  देवताओं का बारह वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है. ऐसी मान्यता है कि 144 वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का अयोजन होता है. महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है.

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